जीवधरियो के लक्षण (Characteristics of Living Beings)

जीवधरियो के लक्षण

(Characteristics of Living Beings)

 

1.    जीवन चक्र (Life-Cycle) - सभी जीव एक निश्चित जीवन चक्र का अनुसरण करते है| उनका जन्म होता है, वे विकास करते है, प्रजनन करते है, कुछ समय बाद वृद्धावस्था को प्राप्त करते है और अंत में उनकी मृत्यु हो जाती है | अतः जीवो में क्रमबंध रूप से विधिक क्रियाए होती है |

2.    जीवद्रव्य (Protoplasm : Protos = First ; Plsma = Form) - जीवधारियों में वास्तविक जीवित पदार्थ जीवद्रव्य है | यही जीवधारियों की भौतिक आधारशिला है | जीवद्व्य में सभी जैविक क्रियाए होती है | जीवद्रव्य में होने वाले रासायनिक भौतिक परिवर्तन और जीवद्रव्य और वातावरण के बीच आदान प्रदान की क्रियाएँ ही जैविक क्रियाएँ (Vital Activities) कहलाती है |प्रोटीन कुछ अन्य रासायनिक पदार्थ एक विशेष अनुपात रूप में मिलकर जीवद्रव्य की रचना करते है | जीवन इन सब पदार्थो की एक दूसरे के अनुरूप और क्रमबन्ध प्रक्रिया पर ही आधारित है |

3.     कोशा- संरचना (Cell-Structure) - जीवधारी एक या एक से अधिक संरचनात्मक इकाइयों से बने होते होते है जिसे कोशा (कोशिका) कहा जाता है पौधो और जन्तुओ की सभी कोशिकाओ में जीवद्रव्य (Protoplasm) कोशा कला (Cell Membrane=Plasmalemma) द्वारा घिरा होता है पौधो में इसके अतिरिक्त कोशकला के बाहर एक निर्जीव कोशिका भित्ति (Cell Wall) भी होती है |

4.    उपापचय (Metabolism) - सभी जीवधारियों में हर समय बहुत से रासायनिक और भौतिक परिवर्तन होते रहते है | इनमे उपचयी (Anavolic) क्रियाए रचनात्मक (Synthetic) होती है | इनमे सरल पदार्थो से वे जटिल पदार्थ बनते है जो जीवद्व्य के घटक होते है | इसके विपरीत अपचयी (Catabolic) क्रियाएँ विनाशात्मक Distructive) होती है | इनमे जटिल पदार्थो के विघटन से सरल पदार्थ बनते है | उपचयी और अपचयी क्रियाओ से मिले सम्पूर्ण रूप को उपापचय (Metabolism) कहते है |

5.    श्वसन (Respiration) - जीवधारियों में श्वसन हर समय होता रहता है | इस क्रिया में जीव वायुमण्डल से ऑक्सीज़न लेते है और ऑक्सीज़न के बराबर कार्बन डाइ आक्साइड बाहर निकलते है | इस क्रिया में कार्बोहइड्रेट, वसा  और प्रोटीन का आक्सीकरण (Oxidation) होता है और ऊर्जा मुक्त होती है | इस क्रिया से मुक्त ऊर्जा से ही जीवधारियों की समस्त जैविक क्रियाएँ संचालित होती है |

6.    पोषण (Nutration) - जीवद्रव्य के निर्माण के लिए और जीवधारियों की वृद्धि और विकास के लिए भोजन की आवश्यकता होती है पौधे पृथ्वी से जल खनिज पदार्थ वायुमंडल से कार्बन डाइ आक्साइड लेकर क्लोरोफिल की सहायता से विभिन प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स, वसा और प्रोटीन बनाते है जन्तु इन्हे पौधो से प्राप्त करते है |

7.    वृद्धि (Growth) - किसी जीवधारी की आकृति,आयतन और भार के बढ़ने को वृद्धि कहते है | यह सफल उपापचय का अंतिम परिणाम है | सफल उपापचय में उपचयी क्रियाएँ , अपचयी क्रियाओ से अधिक होती है| पौधो में वृद्धि अनिशिचित समय तक  विभोज्योतकी कोशाओं (Meristematic Cells) द्वारा निरन्तर होती रहती है और जन्तुओ में एक विशेष अवस्था आने पर रुक जाती है |

8.    प्रजनन (Reproduction) - जीवधारियों में अपने जैसे जीव पैदा करने की क्षमता होती है जिसे प्रजनन कहते है | परन्तु निर्जीव वस्तुओ में ऐसा नहीं होता |

9.    गति (Movement) - गति जीवधारियों का मुख्य लक्षण है | एक कोशिका के अंदर जीवद्रव्य का का अथवा सम्पूर्ण पौधो का जैसे क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas) में अथवा पौधो के एक स्वतन्त्र भाग जैसे युग्मक (gamete) या चलबीजाणु (zoospore) का एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना गमन कहलाता है | जन्तु भोजन या अनुकूल वातावरण की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान को गमन (locomotion) करते है | अधिक उच्य वर्गों के पौधो में उनके शरीर का कोई भाग जैसे जड़ या तना एक ओर मुड़ जाता है |

10.     उत्सर्जन (Excretion) - सभी जीवधारियों ने विविध क्रियाओ के फलस्वरूप जल और कार्बन डाइ आक्साइड ही नहीं परन्तु अन्य प्रकार के अनावशयक और हानिकारक पदार्थ भी बनते है | इन पदार्थो को जीवधारी निरन्तर अपने शरीर से निष्कासित करते रहते है | 


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