वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिक (Scientist of Botany)
वनस्पति विज्ञान के वैज्ञानिक
(Scientist of Botany)
1. बीरबल साहनी (Birbal Sahni) -
प्रोफेसर बीरबल साहनी का जन्म 1891 में हुआ था | इनका जन्म स्थान पंजाब भेरा गांव था | इन्होने राजकीय कालेज लाहौर से शिक्षा ग्रहण की | उसके बाद ये उच्य शिक्षा के लिए केम्ब्रिज विश्वविद्यालय इंग्लैंड गए | विदेश से शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत इन्होने बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में अध्यापन कार्य किया | प्रोफेसर साहनी को भारतीय जीवाश्म विज्ञान वनस्पति विज्ञान का जनक कहते है | प्रोफेसर साहनी ने 1946 में जीवाश्म विज्ञान में शोध हेतु एक संस्थान की स्थापना की | इसको बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेलियोबोटानी (Birbal Sahni Institute of palaeobotany, B.S.I.P) के नाम से जाना जाता है|
2.प्रो० शिवराज कश्यप (Prof. Shivram Kashyap) -
प्रो० शिवराज कश्यप का जन्म 1882 में पंजाब के झेलम में हुआ था| इन्होने बी० एस० सी० की शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय में ग्रहण की | इसके बाद उच्य शिक्षा प्राप्त करने हेतु केम्ब्रिज विश्वविद्यालय इंग्लैंड गए| विदेश से आने के उपरांत इन्होने लाहौर के राजकीय विद्यालय में शिक्षण कार्य किया| इसके उपरांत इनकी नियुक्ति पंजाब विश्वविद्यालय में हुई |प्रो० कश्यप भारतीय ब्रायोफाइटा के जनक के रूप में माने जाते है | इन्होने ब्रायोफाइटाक का अनेक बार हिमालय पर जाकर अध्ययन किया और इनकी दो खण्डो में प्रकाशित पुस्तक Liverworts
of the Western Himalayas and Panjab Planis में वर्णन किया है | इस पुस्तक को आज भी Reference Book हेतु उपयोग किया जाता है | भारत में इंडियन बोटेनीकल सोसायटी की स्थापना प्रो० कश्यप ने की |
3. प्रो० जगदीश चन्द्र बोस (pro. Jagdish Chandra Bose) -
प्रो० बोस का जन्म 13 नवम्बर 1858 में बंगलादेश के रारी-खाल नामक स्थान पर हुआ। इनकी स्नातक तक की शिक्षा सेन्ट जेवियर कालेज कलकत्ता में हुई। इन्होने बी० एस० सी० डिग्री केम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से प्राप्त की |फिर ये विदेश से शिक्षा ग्रहण कर भारत लौटे और इन्होने प्रेसीडेन्सी कॉलिज, कलकत्ता में भौतकी के अध्यापन हेतु कार्यभार ग्रहण किया | 1895 में लन्दन विश्वविद्यालय ने इनको डी० एस० सी० की उपाधि प्रदान की | 1922 में इनको रॉयल सोसायटी ऑफ़, लन्दन का सदस्य चुना गया | इनका प्रमुख योगदान उच्य पादपों में रसारोहण (Ascent of Sap) से सम्बन्थित है | इनका विशेष योगदान Magnetic cryscograph, photosynthetic
recorder, oscillating recorder आदि उपकरणों के विकास से सम्बन्थित है| ब्रिटिश सरकार ने इनको सर (Sir) की उपाधि से सम्मानित किया| इन्होने कलकत्ता ने बोस इंस्टिट्यूट की भी स्थापना की |
4. प्रो० एम० ओ० पी० आयंगार (Prof. M.O.P. lyengar) -
इनका जन्म 1886 में चेन्नई में हुआ | इन्होने 1906 में प्रेसिडेंसी कालेज, चेन्नई में स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की | और इसी संस्था से 1909 में एम० ए० की उपाधि प्राप्त की| उसके बाद इनको मद्रास म्यूजियम में संगहालय (Curator) के पद पर नौकरी मिल गयी | इन्होने शैवाल पर शोध हेतु प्रेसिडेंसी कालेज चेन्नई में शोध संस्थान की स्थापना की | इनको भारतीय शैवाल विज्ञान का पिता कहा जाता है |
5.प्रो० के० सी० मेहता (Prof. K. C. Mehta) -
इनका जन्म 1892 में हुआ और इनका जन्म स्थान पंजाब के अमृतसर में हुआ था। इन्होने प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक शिवराम कश्यप के निर्देशन में राजकीय महाविद्यालय लाहौर से एम० एस० सी० की शिक्षा ग्रहण की | उसके बाद इन्होने आगरा कॉलेज के Associate Professor के पद पर कार्यभार ग्रहण किया | इन्होने Ph.D उपाधि केम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से प्राप्त की | इन्होने आगरा कॉलेज में वनस्पति विज्ञान के अध्यक्ष पद का कार्यभार ग्रहण किया | इसके बाद ये महाविद्यालय के प्रचार्य (Principal ) रहे | प्रो० मेहता का भारतवर्ष में गेहू के किट्ट रोग (rust) की पुर्नरुद्रभवन (recurrence) पर महत्तवपूर्ण कार्य है | इनके अनुसार गेहू के किट्ट रोग के यूरीडोबीजाणु पहाड़ो पर स्वयं उगने वाले गेहू और अन्य घासो पर जीवित रहते है | ये अगली गेहू में संक्रमण फैलते है | इन्होने गेहू के किट्ट रोगो के नियंत्रण के उपाय भी सुझाय |
6.प्रो० पी० माहेश्वरी (Prof. P. Mehaswari) -
पंचानन
माहेश्वरी(1904-1966 ई0), सुप्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी थे। इनका जन्म राजस्थान के जयपुर नगर में हुआ था, जहाँ इनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होने एम0 एस-सी0 की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रो० माहेश्वरी का विशेष कार्य पादप भ्रूणविज्ञान एवं पादप आकारिकी पर हुआ है। वनस्पति विज्ञान की अन्य शाखाओं, विशेषत: पादप क्रिया विज्ञान, में भी इनकी रूचि थी। इन्होने An Introduction of
the Embryology of Angiosperm नामक पुस्तक लिखी जिसका Reference Book के रूप में आज भी उपयोग होता है | इनको Royal Society of
Londan का सदस्य नियुक्त किया गया | इन्होने शोध में आने वाली एक अन्य पुस्तक Recent Advances in
Embryology of Angiosperm का संपादन किया |
7. प्रो० रामदेव मिश्र (Prof. Ramdev Mishra) -
प्रो० रामदेव मिश्र भारत के पर्यावरणविद एवं वनस्पतिशास्त्री थे। इनको भारतवर्ष में परिस्थितिकी का जनक (Father of Ecology ) माना जाता है प्रोफेसर रामदेव मिश्र ने 1937 में लीड्स विश्वविद्यालय से पर्यावरणविज्ञान में पीएचडी की। इसके बाद वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वनस्पतिशास्त्र विभाग में नियुक्त हुए जहाँ उन्होने पर्यावरण विज्ञान में विश्वस्तरीय कार्य किया।8.रॉबिन हिल (Robin Hill) -
रॉबर्ट
हिल या रॉबिन हिल एक ब्रिटिश प्लांट बायोकेमिस्ट थे ,जिन्होने 1939 में प्रकाश संश्लेषण की 'हिल प्रतिक्रिया'(Hill Reaction) का प्रदर्शन किया था, यह साबित करते हुए कि प्रकाश संश्लेषण के चरणों की आवश्यकता के दौरान ऑक्सीजन का विकास होता है।
9.सर हेन्स ए० क्रेब्स (Sir Hans Adolf Krebs) -
सर हेन्स एडोल्फ क्रेब्स (25 अगस्त 1900 - 22 नवंबर 1981) एक जर्मन में जन्मे ब्रिटिश जीवविज्ञानी, चिकित्सक और बायोकेमिस्ट थे। वे कोशिकीय श्वसन के अध्ययन में एक अग्रणी वैज्ञानिक थे, जीवित कोशिकाओं में एक जैव रासायनिक प्रक्रिया जो भोजन और ऑक्सीजन से ऊर्जा निकालती है। यह जीवन की प्रक्रियाओं को चलाने के लिए उपलब्ध कराता है। वह सबसे अच्छी तरह से रासायनिक प्रतिक्रियाओं के दो महत्वपूर्ण अनुक्रमों की उनकी खोजों के लिए जाना जाता है जो मनुष्यों और कई अन्य जीवों की कोशिकाओं में होते हैं, जैसे साइट्रिक एसिड चक्र और यूरिया चक्र। जिसे अक्सर "क्रेब्स चक्र" (Krebs Cycle) के रूप में जाना जाता है, चयापचय प्रतिक्रियाओं का प्रमुख अनुक्रम है जो मनुष्यों और अन्य ऑक्सीजन-प्रतिक्रिया वाले जीवों की कोशिकाओं में ऊर्जा प्रदान करता है; और इसकी खोज ने क्रेब्स को 1953 में फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार दिया |
10.हर गोबिन्द खुराना (Har Gobind khorana) -
प्रो० हर गोबिंद खोराना एक भारतीय अमेरिकी बायोकेमिस्ट थे। इन्होने जेनेटिक कोड पर विशेष कार्य किया |R.W. होली (R. W . Holley) और मार्शल
नीरेनबर्ग के साथ 1968 में सर्वप्रथम जेनेटिक कोड के प्रोटीन संस्लेषण में महत्व पर
प्रकाश डालने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला
| खुराना ने सर्वप्रथम न्यूक्लियोटाइड के क्रम
से प्रयोगशाला में ओलिगोन्यूक्लियोटाइड की श्रृंखला बनायीं | प्रथम मानव रचित जीन
का संश्लेषण भी प्रयोगशाला में किया | इस प्रकार की कृत्रिम जीन का जैविक प्रयोगशाला
में जीन अभियान्त्रिकी व क्लोनिग के द्वारा
नए पादप व जन्तुओ के निर्माण में प्रयोग किया जा रहा है |
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